Ghalib Birth Anniversary:खत–ओ–किताबत के भी उस्ताद थे ग़ालिब, शायरी ही नहीं, खत कम और गुफ्तगू ज़्यादा...
- By Sandeep --
- Tuesday, 27 Dec, 2022
Ghalib Birth Anniversary:खत–ओ–किताबत के भी उस्ताद थे ग़ालिब
असद उल्लाह बेग खां जिन्हें दुनिया ग़ालिब के नाम से जानती और याद करती है आज उनकी जन्मतिथी है। उर्दू शायरी में को एक नया आयाम देने वाले गालिब अपने खतों के जरिए पढ़ने वालों को ऐसा महसूस करवाते थे मानों वो खत लिखने वाले के सामने ही हो।
आगरा: हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां और...। असद उल्लाह बेग खां यानि मिर्जा गालिब पर यह बात सटीक बैठती है। उर्दू शायरी के साथ ही मिर्जा गालिब का खत लेखन भी बेजोड़ है। उनके खतों में उनके दिल के अरमान नजर आते हैं। खत लिखते समय वह स्थान, माहौल और समय का चित्रण भी करते थे, जिससे पढ़ने वाले को लगता था कि खत लिखने वाला सामने ही बैठा है।
मिर्जा गालिब द्वारा लिखा गए पत्र
गालिब अपने मित्रों, रिश्तेदारों और प्रशंसकों को नियमित तौर पर पत्र लिखा करते थे। उनके लिखे एक खत की बानगी देखिए, "लो भाई अब तुम चाहे बैठे रहो या जाओ अपने घर। मैं तो रोटी खाने जाता हूं। अंदर-बाहर सभी रोजेदार हैं। यहां तक कि बड़ा बेटा बाकर अली खां भी। सिर्फ मैं और मेरा एक प्यारा बेटा हुसैन खां रोजाखार हैं।' आगरा निवासी अपने दोस्त मुंशी शिवनारायण को गालिब ने 19 अक्टूबर, 1858 को एक खत लिखा था, जिसमें उन्होंने काला महल, खटिया वाली हवेली, कटरा गड़रियान का जिक्र किया है।
बचपन को याद कर गालिब लिखते हैं, "कटरे की एक छत से वो तथा दूसरे कटरे की छत से बनारस के निष्कासित राजा चेत सिंह के पुत्र बलवान सिंह पतंग उड़ाते और पेच लड़ाते थे।' एक अन्य खत में उन्होंने लिखा है, "...सुबह का वक्त है। जाड़ा खूब पड़ रहा है। अंगीठी सामने रखी हुई है। दो हर्फ लिखता हूं। आग तापता जाता हूं।' एक अन्य खत में वह लिखते हैं कि, वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (गदर) को भी उन्होंने देखा और भोगा था। उनके सामने ही दिल्ली का साहित्य समाज नष्ट हो गया। आठ सितंबर, 1858 को उन्होंने अपने मित्र हकीम अजहद्दौला नजफ खां को खत में लिखा था कि, "वल्लाह, दुआ मांगता हूं कि अब इन अहिब्बा (प्रिय) में से कोई न मरे, क्या माने के जब मैं मरूं तो मेरा याद करने वाला, मुझ पर रोने वाला भी तो कोई हो।'
मुरासले को मुकालमा बनाया
बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय के उर्दू विभाग की अध्यक्ष प्रो. नसरीन बेगम कहती हैं कि मिर्जा गालिब ने मुरासले (खत) को मुकालमा (डायलाग) बना दिया। उन्होंने खत में लंबे संवाद लिखने के बजाय उन्हें रोचक अंदाज में लिखना शुरू किया, जैसे कहो मियां कैसे हो..., मेरी भी सुनोगे या अपनी ही कहोगे...। "हजार कोस से बजबाने कलम बातें किया करो, हिज्र (जुदाई) में बिसाल (मुलाकात) के मजे लिया करो...'। 1857 के गदर के दौरान लिखे उनके पत्रों को पढ़कर लगता है कि हम उसी दौर में हैं और उस वाकये को देख रहे हैं। अपनी मुफलिसी पर भी खत में वह लिखते हैं कि "मेह अगर दो घंटे बरसती है तो छत चार घंटे...'। कर्फ्यू के साथ ही पेंशन पर भी उन्होंने कलम चलाई। प्रो. नसरीन बेगम कहती हैं कि इंसान जहां पैदा होता है, उसका वहां से दिली लगाव होता है। गालिब ने भी आगरा और काला महल की हवेली का जिक्र अपनी शायरी व खतों में किया है। उनकी निशानी को संरक्षित किया जाना चाहिए।
पैसे नहीं होने पर बैरंग खत भेज देते थे
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि फाकामस्त तबियत के गालिब कभी पैसे नहीं होने पर बैरंग ही खत भेज दिया करते थे। उन्हें भी दूसरों के पत्र पाकर प्रसन्नता होती थी। गालिब लिखते हैं कि, "आज अगर मेरे सब दोस्त व अजीज़ यहां फ़राहम (एकत्र होना) और हम और वो बाहम (परस्पर) होते तो मैं कहता के आओ और रस्में तहनियत (बधाई की रस्म) बज़ा लाओ। खुदा ने फिर वो दिन दिखाया कि डाक का हलकारा अनवरद्दौला का खत लाया।'
काला महल में हुआ था जन्म
मिर्जा गालिब का जन्म कला महल (काला महल) में 27 दिसंबर, 1797 को हुआ था। यहां मारवाड़ के राजा गज सिंह की हवेली थी। उसके एक भाग में इंद्रभान गर्ल्स इंटर कालेज बना हुआ है। काला महल, गुलाब खाना, जीन खाना, मुबारक महल, टीला माईथान, कटरा खानखाना की गलियों में उनका बचपन व लड़कपन गुजरा था। यहां उनके दोस्त रहा करते थे। इसलिए आगरा की पतंगबाजी और गली-कूचे हमेशा उनके दिल में बसे रहे। इनका जिक्र उन्होंने अपने खतों में किया है।
किताब का विमोचन आज
मिर्जा गालिब शोध अकादमी के निदेशक डा. इख्तियार सैयद जाफरी द्वारा संपादित पुस्तक "मिर्जा गालिब और जान कीट्स' का विमोचन मंगलवार को लखनऊ में उप्र उर्दू एकेडमी में होगा। डा. जाफरी ने बताया कि यह पुस्तक मथुरा की शाही ईदगाह कमेटी के अध्यक्ष जेड. हसन की डी-लिट् की थीसिस का अनुवाद है। 450 पेज की पुस्तक में मिर्जा गालिब और जान कीट्स द्वारा जिंदगी और कायनात के विभिन्न फलसफों, जिंदगी, मौत, गम, खुशी, इश्क, मोहब्बत, कामयाबी, नाकामी पर लिखी गई शायरी व कविताओं का तुलनात्मक वर्णन किया गया है।